मनुष्य का मन ही उसके उत्थान और पतन का कारण है। मन एक मदमस्त हाथी की तरह है, जिसे पूर्ण सद्गुरु के ब्रह्मज्ञान रूपी अंकुश से वश में किया जा सकता है। अगर मनुष्य का मन स्थिर हो जाए तो तमाम समस्याओं और परेशानियों का भी अंत हो जाएगा।
मन हवा के प्रबल वेग की तरह है। हवा उपवन का संग करती है तो सुवासित होकर अपने संपर्क में आने वालों को महकाती है। अगर हवा को गंदगी का साथ मिलता है तो दुर्गध और बीमारियां ही फैलाती है। उन्होंने कहा कि चंचल मन होने के कारण मनुष्य की इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। मनुष्य को समझना होगा इच्छाएं पूरी होना और आवश्यकता पूरी होना, दोनों अलग-अलग हैं।
जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं, जिसकी उदात्त व्याख्या वेदों में न हो। , जहां लोग शान्ति और प्रेम के साथ रहते हों, एक-दूसरे के सहयोगी हों। सबका लक्ष्य एक हो, एक दूसरे से मधुर वचन बोलते हों। संत रामपाल जी महाराजकहते है कि ऐसा समाज मानव को उच्च सफलता की ओर अग्रसर होने में सहायक होता है।
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