शिक्षा का स्तर अत्यधिक खराब होने के कारण युवा पीढ़ी को पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया है, वह इसके पीछे इतना दीवाना है, कि उसे कुछ सूझता ही नहीं है. वह अपने माता-पिता के प्रेम को भुला बैठा है. अपनी पत्नी से भी देह तक ही सम्बंध रख पाता है, सारा दिन पैसे-पैसे करता है, उसी के पीछे भागता है. पैसा भी उसको नादान समझ कर उतना ही दूर भागता है. भारतीयता के बिना लक्ष्मी कैसे आ सकती हैं, और टिक सकती हैं. हमारे शास्त्रों में स्पष्ट रूप में कहा गया है कि विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता प्राप्त होती है और पात्रता से धन प्राप्त होता है, और इस प्रकार से धन कमाने के बाद ही वह धन सुख का कारक बनता है, यदि आप अवलोकन करें, तो यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि इस प्रकार से धनागम कुछ विरले लोगों के यहॉं हो रहा है और सच्चे मायने में वही सुखी हैं. क्योंकि उन्हें संतोष धन मिल गया है.
शिक्षा जीवन जीने की कला है. किन्तु हम कला के नाम पर कुछ नहीं सीखते हैं. जो लोग पढ़ार्इ न सीख कर कोर्इ हुनर सीख लेते हैं, वे हर मामले में काफी आगे देखे जाते हैं. आजकल व्यवसाय में जो लोग आगे हैं, वे इसी प्रकार की कला में पारंगत लोग हैं.
इस प्रकार आज हमें अपनी शिक्षा पद्धति के दोषों को निकाल कर अपनी भारतीयता और वास्तविकता को समाहित करने की जरूरत है.
जिससे आज जो समस्यायें युवा पीढ़ी के सामने आ रही है, सर्वप्रथम हमें युवा पीढ़ी को अपने सद ग्रंथों से परिचित करवाना होगा जिससे उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा और युवा पीढ़ी अनेक प्रकार की बुराइयों को त्याग देगी वह सद्भक्ति अपना कर अपने जीवन को सफल कर सकती है वर्तमान समय में अनेक युवा संत रामपाल जी महाराज के तत्व ज्ञान से परिचित होकर एक सफल जीवन की ओर अग्रसर हो रहे हैं
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