*संत गरीबदास जी द्वारा प्रमाण*
संत गरीबदास जी को जिंदा महात्मा रूप में *सतगुरु कबीर साहेब* मिले। उसके बाद कबीर साहिब ने गरीबदास जी को तत्वज्ञान से परिचित करवाकर अपने निजधाम अर्थात सतलोक लेकर गए, गरीबदास जी को सतलोक की सभी व्यवस्थाओं व सुख सुविधाओं से परिचित करवाया। *कबीर परमेश्वर* ने सतलोक में अपने दो रूप दिखाकर फिर जिंदा वाले रूप में कुल मालिक के सिंहासन पर विराजमान हो गए और कहा कि मैं 120 वर्ष तक काशी में धाणक जुलाहा रूप में रह कर आया हूं।
चारों पवित्र वेदों में जो कबीर देव ,अग्नि, कविरंघारि: आदि नाम है वह मेरा ही बोध कराते हैं। गरीबदास जी ने कबीर परमेश्वर से सतलोक में रहने की जिद की लेकिन कबीर *परमेश्वर* के समझाने के बाद वह मान गए।
तब गरीबदास जी को विश्वास हुआ और उसके बाद संत गरीबदास जी ने पूर्ण परमात्मा *कबीर साहेब* का आंखों देखा विवरण अपनी अमृतवाणी वाणी में लिखा है
अनंत कोटि ब्रह्मांड का एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सिरजनहार।।
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